________________
श्री
अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि
॥९१ ॥
पछी प्रकट एक नवकार बोली नमुत्थुणं० जावंति चेइआइं० खमा० जावंत केवि साहू० नमोऽर्हत्० कही स्तवनने स्थाने अजियसंति अथवा संतिकरं कही जय वीयराय बोलवा ।
(१८) पछी छेवटे जे बलिबाकळा राख्या छे ते उछाळवा, पछी पहेला स्थापन करेला शान्तिदेवीना कुंभ आगळ बीजा चार कुंभ डाघरहित घाटवंता लईने ते दरेकमां चोखा शेर सवा, रूपानाj, सोपारी ५ मूकी श्रीफळ एक लीला पीळा वस्त्र वडे ढांकी, ग्रीवासूत्र बांधी, फूलमाळ पूजीने शुभ श्रावक कुमारिकाना माथे स्थापी वाजते-गाजते गीत गाते शान्तिकुंभ पासे आवी स्थापे । पछी शान्तिदेवीने योग्य नैवेद्य धरीए, ते आ प्रमाणे :- खीर करंबो, बाट-लापसी, सुंवाली २१, वडा २१, पंचधारी-लापसी, लाडवा मगदळना ९, दहीं एक पात्रमा नांखी मूकीए. पछी त्यां मंगलदीवो उतारीए। पछी शान्ति उद्घोषणापूर्वक क्षेत्रदेवी-देवता पूजीए ।
(१९) पछी नीचे प्रमाणे देव वांदीए :- इरियावहि० अन्नत्थ० कही एक लोगस्सनो काउ० करी प्रकट लोगस्स कही पछी चैत्यवंदन, नमुत्थुणं० वगेरे कही स्तवन संतिकरंगें कही जय वीयराय० कहेवा । पछी अरिहंतचेइयाणं कही अन्नत्थ एक नव० काउ० पारी नमोऽर्हत् कही स्तुति कल्लाणकंदं० नी कहेवी.
श्री
अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि
विधि
॥११॥
Jain Education international
For Personal & Private Use Only