Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

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Page 246
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७७॥ हर्ष धरी अप्सरावृंद आवे, स्नात्र करी एम आसीस पावे । जिहां लगे सुरगिरि जंबूदीवो, अमतणा नाथ जीवानुजीवो ॥२॥ श्री मन्मन्दरमस्तके शुचिजलैधौते सदर्भाक्षतैः, पीठे मुक्तिवरं विधाय रचितं तत्पादपुष्पस्त्रजा। इन्द्रोऽहं निजभूषणार्थममलं यज्ञोपवीतं दधे, मुद्राकंकणशेखराण्यपि तथा जैनाभिषेकोत्सवे ॥१॥ विश्वैश्वर्यैकवर्यास्त्रिदशपतिशिरःशेखरस्पृष्टपादाः, प्रक्षीणाशेषदोषाःसकलगुणगणग्रामधामान एव । जायन्ते जन्तवो यच्चरणसरसिजद्वन्द्वपूजान्विताः श्री अर्हन्तं स्नात्रकाले । श्री कलशजलभृतैरेभिराप्लावयेत्तम् । अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि ___ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय ॐ हाँ ही हूँ हूँ हौं हूँः अर्हते तीर्थोदकेन । विधि | अष्टोत्तरशतौषधिना सह षष्टिलक्षकौट्यैकप्रमाणकलशैः स्नपयामि, शान्तिं तुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ आ मंत्र उच्चरतां स्नात्र करीए ॥ इति जलपूजा ॥१॥ ॥७७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org

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