Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

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Page 245
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७६ ॥ तेमां सवौषधि नांखीए तेनो मंत्र :- ॐ ही, सर्वौषधिसंयुक्त्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्बं, मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥१॥ स्वाहा । ए मंत्रे मंत्री माटली मध्ये सौंषधम नांखीए । चंदनना छांटा नांखीए । दरीयाइ तास्तो (लीलुं वस्त्र) ढांकीए पछी दक्ष श्रावक धूप दीप सहित माटली पर हाथ राखी नवकार १, उवसग्गहरं २, संतिकरं ३, तिजयपहुत्त ४, नमिऊण ५, अजितशांति ६ अने भक्तामर ७-ए सात स्मरण शुद्ध पाठपूर्वक गणे । (११) पछी विधिथी स्नात्रपीठ उपर श्री शान्तिनाथ तथा श्री ऋषभदेवनी पंचतीर्थी मूर्ति सिद्धचक्रयुक्त स्थापवी । पछी सुवर्णना, रूपाना तथा अन्य धातुना कळश धोई धूपी पंचामृत भरी श्री शांतिनाथ- स्नात्र भणावीए । तेमां चार कुमार कुमारिका पवित्र श्वेत वस्त्र आभरणादिक पहेरे । पछी अष्टप्रकारी पूजा भणावे । विमलकेवलभासनभास्करं,जगति जन्तुमहोदयकारणम् । जिनवरं बहुमानजलौघतः, शुचिमनाः स्नपयामि विशुद्धये ॥ स्नात्र करतां जगतगुरु शरीरे, सकलदेवे विमलकलश नीरे । आपणां कर्ममळ दूर कीधा, तिणे ते विबुध ग्रंथे प्रसिद्धा ॥१॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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