Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

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Page 250
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ८१ ॥ Jain Education International (१६) पछी अष्टप्रकारी पूजानो सामान मेळवीए । १०८ नाळचावाळा कळश क्षीरोदके पंचामृते भरी शुभ श्रावक स्नात्र करे, अथवा आठ कळशे-नीचेनी गाथा भणीने स्नात्र करीए :( १ ) नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ शान्तिं शान्तिनिशान्तं, शान्तं शान्ताशिवं नमस्कृत्य । स्तोतुः शान्तिनिमित्तं, मन्त्रपदैः शान्तये स्तौमि ॥ १ ॥ - ह्रीं स्वाहा ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रां ह्रीं हूँ हूँ ह्रीँ हूँ: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय (नाशाय ) अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संति संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विउ मे ॥१॥ ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइँदगयरणभयाइँ । पासजिणनामसंकित्तणेण, पसमंति सव्वाइँ ॥२॥ ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ वरकणयसंखविद्दुम- मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइयं वंदे ॥३॥ ह्रीं स्वाहा ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ८१ ॥ www.jainelibrary.org

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