Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah,
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar
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श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि
विधि
॥ ६९ ॥
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उगटी, धोई धूपी शुद्ध करीए । पछी तेमां सुगंधी पाणी भरी उत्तम फूल मूके । केसरना छछंटा नाखे । अंगलूंछ्णे ढांके । वृद्ध श्रावक कुसुमांजलि सात भणावे । पछी आदिनाथ, अजितनाथ, शान्तिनाथ अने पार्श्वनाथ चार कळश क्रमसर भणावे अथवा बे स्नात्र भणावी सुगंधी जळथी भरेला कळशथी स्नात्र करे । विशेषे पूजा करे । कोरुं भाणुं एक मूके । पछी रांध्यं नैवेद्य सौभाग्यवती स्त्री पासे वाजतेगाजते लावीने ढोवरावे । पछी विशेष दीवा अजवाळे । प्रभुने सिंहासने पधरावी, पूर्वे पूजित अष्टमंगल थापे. (अहीं विध्यंतरे दिक्पाल पूज्या पछी अष्टमंगल थापे छे) पछी पुष्पवृद्धि करे । पछी विधिपूर्वक लूण पाणी उतारी, आरती तथा मंगलदीवो उतारवो । पछी चैत्यवंदन करवुं । स्तवनना स्थाने तिजयपहुत्त० कही जयवीयराय कहेवा । (३०) पछी अष्टोत्तरी स्नात्र करावनारने अथवा जेने आदेश मळ्यो होय तेने स्त्री सहित पीठ आगळ ऊभा राखी स्नात्रकारकना हाथ उपर कुंभ मूकवो । स्त्री स्वामीना खभा उपर हाथ अडाडीने ऊभी रहे । ( अहीं कोई गामे स्त्री भर्तारना छेडाछेडी बांधे छे) ब्रह्मचारी होय तो एकलाना हाथ उपर पण थापे । ( ३१ ) ते कुंभमां सुखडनो साथियो करी ऊपर रूपानाणुं मूके । कुंभने कंठे ग्रीवासूत्र, ऋद्धि, वृद्धि प्रमुख बांधे, फूलमाळा पहेरावे । पछी एक मोटा नाळवाळो कळश नवण जळ वडे भरी अखंड धाराए, स्नात्रकारकना हाथमां रहेला कुंभने भरे । अहीं बीजा बे श्रावक बे बाजु बे कळश वडे स्नात्रजळ मोटा कळशमां एवी रीते रेडता जाय के जेथी
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श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि
॥ ६९ ॥
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