Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

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Page 239
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७०॥ मोटा खळशनी धारा खंडित न थाय । (३२) धारा देवा मांडे एटले एक श्रावक मोटी शांतिनो पाठ पद-वर्ण शुद्ध रीते भणे । जेटलीवारे कुंभ भराय अने शांतिपाठ पूरो थाय त्यां सुधी एक श्रावक नासिका चिंतवणीनो उपयोग देवरावे । पछी कुंभ उपर पूजित श्रीफळ मूके, ते उपर रांतु अथवा पीळु वस्त्र ढांके । पछी शक्ति होय तो कुंभने बे हाथमा झाले, नहीं तो मस्तके धारण करे । (३३) पछी पूर्वे जे बार श्रावके ग्रह-दिक्पाल नोतर्या होय ते बारे श्रावक ग्रहदिक्पाल विसर्जन करे । तेमा प्रथम एक पूजक श्रावक ग्रहपट्टक पासे आवी विसर्जन मुद्रा करी-ॐ नम आदित्याय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । आ प्रमाणे नवे ग्रहनु पोतपोतानुं नाम लईने उपरना मंत्र वडे विसर्जन करवू । (३४) पछी दिक्पालना पट्ट आगळ पण एक एक पूजक पुरुष पोतपोताना विसर्जन मंत्र वडे विसर्जन करे ते आ प्रमाणे - ॐ नमः इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । आ प्रमाणे दशे दिक्पाल- जुदुं जुदुं नाम लईने विसर्जन करवू । (३५) त्यारपछी चार श्रावक, पूर्वे जे अर्धबलि राखेल छे तेमांथी दशमो भाग नोखो पाडी, ए थाळ उपाडी जळ धूप, दीप वगेरे सर्व उपकरण लई पूर्वे नोतर्या होय ते स्थानके आवी जे विधि वडे नोतर्या होय श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७०॥ For Personal Price Only

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