Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

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Page 236
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ६७ ॥ Jain Education International (श्रीसंघगृहे) श्रीबृहत्स्नात्रमहोत्सवे स्नात्रस्य कर्तुः कारयितुश्च श्री संघस्य ऋद्धिंवृद्धिंकल्याणं कुरु कुरु स्वाहा । आ प्रमाणे बोलवु पछी क्रियाविधिकारक मनमां आ प्रमाणे बोले - विमलकेवलभासनभास्करं, जगति जन्तुमहोदयकारणम् । जिनवरं बहुमानजलौघतः शुचिमनाः स्नपयामि विशुद्धये ॥१॥ स्नात्र करतां जगद्गुरुशरीरे, सकलदेवे विमळकळशनीरे । आपणां कर्ममल दूर कीधा, तेणे ते विबुध ग्रन्थे प्रसिद्धा ॥ हर्ष धरी अप्सरावृंद आवे, स्नात्र करी एम आशिष पावे । जहां लगे सुरगिरि जंबूदीवो, अमतणा नाथ जीवानुजीवो ॥ ॐ ह्रीं श्रीं परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलादिकं यजामहे स्वाहा । For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ६७ ॥ www.jainelibrary.org

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