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श्री
अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि
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॥ अथ मंडपपीठ-पीठिका (वेदिका) स्थापन विधिः ॥ शुभ दिवसे चार अथवा एक कुंवारी कन्या द्वारा कंकु अथवा चोखाना चार साथीया बनावीने उपर वचला साथीया उपर नारीयेल-मिठाई ११ रुपियो मूकवो । पछी मिस्त्री- बहुमान करी २७ लं. x २७ प. - २५ (उंची) काची इंटोनी वेदिका बनाववी उपरना भागमां ९x ९ नो समचोरस उंडो खाडो कराववो । पछी चारे बाजु प्लास्टर करावी सफेद चूनाथी पोतावी पेन्टर बोलावी पीठिका मां भगवाननी सामे कलश, जमणी बाजु भु डाबी बाजुमां ही अने सामे सूंढथी पाणी सिंचता हाथी सहित कमल उपर लक्ष्मी बनावराववी, आ रीते तैयारी करावी, पूजनना आगला दिवसे बे कोडायामां सोपारी, पंचरत्नपोटली, ११ रुपियो मूकी संपुट बनावी "कूर्म निजपृष्ठे जिनबिम्बं धारय धारय स्वाहा" १०८ या २७ वार मंत्र बोली संपुट मूकी आठ जातनी माटीथी खाडो पूराववो, पछी ॐ नमो भगवति विश्वव्यापिनि ही सिंहासने स्वस्तिकं पूरयामिति स्वाहा" आ मंत्र ९ वार बोलीं पिठिका उपर स्वस्तिक तथा समवसरण स्वरुप त्रण गढ अष्टगंध द्वारा बनाववा पछी सिंहासन स्थापन करवू, पछी माणिभद्रवीर अथवा घंटाकर्ण महावीरनी थाळी यंत्र वाळी अथवा नाळीयेर अथवा आलेखन करी १०८ वार जेनी थाली करो तेनो मूल मंत्र बोली-सुखडी, फुल, वासक्षेप अगर आदि धूप द्वारा पूजन करी थाली बांधवी (वेदिकाने मिंढळ मरडाशींगी नाडाछडीथी मंत्री बांधवी)
श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि
विधि
॥५४॥
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