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श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि
॥६३॥
करीने ते उपर मूकवी । त्यार पछी ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । ए मंत्र सात वार भणी स्थापनीय मुद्राए गोळीने प्रतिमाजीनी जमणे पडखे स्थापन करे तथा वासफूले स्थापनमंत्र भणी पूजे । (१४) पछी पंचामृत एकठा करी नीचेनो मंत्र बोलेः ॐ ह्रीं जिनबिम्बोपरि नितपद्, घृतदधिदुग्धादिद्रव्यपरिपूतम् । गन्धोदकसन्मिश्र, पञ्चसुधं हरतु दुरितानि ॥१॥ आ मंत्रे त्रण वार मंत्रीने पंचामृत माटलीमा पधरावQ (तथा विध्यंतरे तांबाकुंडीमा सधवा स्त्री पासे पंचामृत एकळु करावी पछी माटलीमां पधरावे) (१५) ॐ ह्रीं सौषधिसंयुक्त्या, सुगन्ध्या घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्बं, मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥१॥ए मंत्र वडे मंत्री, वास वडे पूजी, सर्वोषधी माटलीमां मूके । (१६) पछी १०८ तीर्थना जल मंत्रित करवानो मंत्र :ॐ ह्रीं भः जलधिनदीद्रहकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि शुद्ध्यर्थम् ॥१॥ स्वाहा । आ मंत्र वडे सात वार मंत्री वृद्ध श्रावक पोते अथवा सधवा स्त्री पासे कोठीमां पूरावे । (१७) पछी समूळो डाभ, मीढळ, मरडासिंगी, ऋद्धिवृद्धि साथे ग्रेवासूत्र वडे कंकणमंत्रे मंत्री माटलीने कांठे बांधीए । पछी ते माटली ऊपर पान श्रीफळ मूकीने
श्री
अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि
॥६३॥
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