Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

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Page 207
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३८ ॥ Jain Education International शक्तिहस्ताय मेषवाहनाय सपरिजनाय अमुकगृहे- बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान. अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना । (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण | मंत्रमुद्रादि पूर्ववत् । (६) उपरोक्त मंत्रपूर्वक अष्टप्रकारीपूजा करीए १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । एकलुं केसर २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । जासुद. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । रातुं कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । राती सोपारी. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । चुरमानो लाडु. ८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, सोपारी, चोखा, पैसो. (७) ॐ ह्रीँ मेँ रों रुँ रैं रौं रः अग्नि संवौषट् स्वाहा । (ए मंत्र वडे केरबानी नवकारवाळी एक गणवी ) ( ८ ) उक्त मंत्र वडे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - सदा वह्निदिश नेता, पावको मेषवाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥१॥ ॥ इति अग्निपूजा २ ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३८ ॥ www.jainelibrary.org

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