________________
विविध पूजन संग्रह
॥ १५१ ॥
(८) फल-पूजा "विधुज्जवाला प्रदीपे, प्रवर मणि मयी, मक्ष-मालां कराब्जे । रम्ये वृतां धरन्ती, सतत् मनुदिनं, सांकुशे पाश हस्ते ॥ नागेन्द्रैरिन्द्रचंद्र, दिविपमनुजनै, संस्तुते देव-देवि ।
पद्येऽर्चे त्वां फलौधैर्दिशतु मम सदा निर्मला शर्म सिद्धिम् ॥" "विद्युत ज्वालाओं जैसी तेजस्वी स्वयं सुंदर कर कमलों में सर्वोत्तम मणियों से निर्मित गोल आकार वाली, अक्षमाला को सतत धारण करने वाली, हाथ में अंकुश व पाश को धारण करने वाली, योगेन्द्र इंद्र चंद्र देव एवं मनुष्यों द्वारा स्तुति की हुई है । हे देवि पद्मावती ! आज मैं आपकी फलों से पूजा कर रहा हूं। मुझे सदा निर्मल कल्याण युक्त सिद्धि प्रदान करें ।"
फिर निम्न मंत्र बोलकर बादाम (१०८ मंत्र बोलकर) चढ़ाना "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै फलं समर्पयामि स्वाहा ।"
श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि
॥१५१ ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.ininelibrary.org