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विविध पूजन संग्रह
॥ १४७ ॥
. हा पक्षी ऐसे बीजाक्षरों को गर्भ में रखनेवाली उत्तम देव रमणीयों के द्वारा पूजित, अनेक रूप वाली को पं वं झं बीजाक्षरों के द्वारा आराध्य, योग मार्ग में विचरण करने वाली योगियों के लिये वरद मुद्रा को धारण करनेवाली, हं हंस ऐसे स्वयं के अंगो द्वारा उत्पन्न बीज मंत्रों से सदा सर्वदा वंदनीय पवित्र पाट पर बिराजने वाली तथा दैत्येन्द्रों के द्वारा ध्यायित है, ऐसी है पद्मावती! उत्तम पुष्पो द्वारा आज मैं तेरी पूजा कर रहा हूँ।"
फिर निम्न मंत्र बोलते हुए १०८ पुष्पों से आहूति देना :"ॐ ह्रीँ श्री पद्मावत्यै पुष्पं समर्पयामि स्वाहाः"
इस प्रकार १०८ कमलों (पुष्पों) को अर्पण करने के बाद ६ प्रकार के पुष्पों (फूलों) से भी पूजन करना चाहिए।
(५) नैवेद्य-पूजा "पूर्णे, विज्ञान शोभे, शशधर धवले स्वास्यबिम्बं प्रसन्ने । रम्यैःस्वच्छैः स्व-कान्तै" र्द्विज-करनिकरश्चन्द्रिकाकार-भाषे ॥
श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि
॥ १४७॥
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