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विविध पूजन संग्रह
॥ १२० ॥
गणधर भगवंतों को उपगमई वा विगमई वा धुवेई ऐसे तीन पद दिए, इन तीनपदों के आधार पर गणधर भगवंतों ने इन आगमों की रचना की इसमें पूरे विश्व का सार आ जाता है ।
प्रथम पाट आदि लगाकर उसके उपर उत्तम कपड़ा बिछाकर ४५ ठवणी (सापड़ा) उसके उपर ४५ आगम की पुस्तके एवं उसके सामने ४५ दीपक रखना, प्रथम ज्ञान का दोहा बोलकर एक-एक आगम का नामरूपी मंत्र बोलकर चांदी के सिक्के या ११-१॥ रूपीया फल मिठाई रखकर पूजा करनी ।
तथा आगम पुस्तक पर वासक्षेप द्वारा पूजा एवं दीपक प्रगट करना । जिन जोजन भूमि, वाणीनो विस्तार । प्रभु अर्थ प्रकाशे, रचना गणधर सार ।
सौ आगम सुणतां, छेदीजे गति चार । प्रभु वचन वखाणी, लहिए भवनो पार ॥१॥ निव्वाणमग्गे, वरजाणकप्पं । पणासिया सेस कुवाई दप्पं । मयं जिणाणं सरणं बुहाणं । नमामि निच्चं ति जगप्पहाणं ॥२॥ बोधागाधं सुपद पदवी नीर पूराभिरामं । जीवाहिंसा विरल लहरी संगमागाहदेहं । चूलावेलं गुरुगममणि संकुलं दूर पारं । सारं विरागमजलनिधि, सादरं साधु सेवे ॥३॥
श्री गौतमस्वामी पूजनविधि
॥१२०॥
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