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विविध पूजन संग्रह
॥ १०३ ॥
सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज़मयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिराङ्गारखातिका । स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवई मंगलं, वप्रोपरि वजमनं, पिधानं देह रक्षणे । महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी, परमेष्ठि-पदोद्भूता, कथितापूर्वसूरिभिः । यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि-पदैः सदा, तस्य न स्याद् भयं व्याधि, राधिश्चापि कदाचन । (११) जिस भूमि पर पूजन पढ़ाते है उस भूमि के मालिक, उसकी रक्षा करनेवाले क्षेत्रपालदेवता
उनकी आज्ञा के लिए हरा नारियल, चमेली का तेल, लालपुष्प व ११ रूपीया एवं यंत्र मे अंगुठे के द्वारा केसर से तिलक करना व लाल पुष्प चढ़ाना ।
“ॐ क्षा क्षीं हूं क्षौं क्षः श्री क्षेत्रपालदेव ! इदं स्थानं आगच्छ आगच्छ तिष्ठ-तिष्ठ पूजा बलिं गृहाण गृहाण स्वाहा ॥" (१२) रक्षापोटली विधान (गुरुदेव से रक्षापोटली वासक्षेप के द्वारा मंत्रित कराना ।)
वासक्षेप मंत्र "ॐ हूँ फूट किरिटि किरिटि घातय घातय, परकृतविघ्नान् स्फेटय स्फेटय,
श्री गौतमस्वामी पूजनविधि
॥१०३॥
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