Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
View full book text
________________
प्रगटो तेह अम्हारो रे स्वामी, विनविय मन रंगे ॥१॥
अर्थ:-सहज अनंत सुख निधान शुद्धास्म परिणति, तेनो घात करनार मिथ्यात अज्ञान अने कषाय रूप अनादिकालना महान् शत्रुनोने जेणे सम्यकपराक्रम बड़े जीस्था छे ते "जिन" मां वर अर्थात् प्रधान-शिरोमणि तथा शारीरिक श्रने मानसिक अनंत असह्य दुःखना हेतुभूत श्रा भयानक ससार समुद्रमा परिभ्रमण करी दुःखी थता दीन जीवोनुं परम करुणाभाव वडे रक्षण करनार तथा अन्य जीवोने पण अहिंसानो उपदेश पापी तेश्रो पासे पण रक्षण करावनार तथा अबाध्य सिद्धांत वडे संमोचीन मोक्षमार्गनो उपदेश करी आस्मिक सहज स्वतंत्र परमानंदना दातार होवाथी "स्वामी" तथा अनतज्ञान, अनतदशन, अनतसुख प्रन अनंतवीर्यरूप आत्म लक्ष्मीना मालीक, देहातीत आस्मसत्ताभूमिमां निरंतर विरहमान हे श्री सीमंधर देव ! आपने समर्थ जाणी आप प्रति अत्यंत उलसित चित्ते नम्रभावे विनंती करुंछु के सरस