Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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॥ अथ श्री द्वादशम श्री चंद्रानन जिन स्तवनम् ॥
॥ चीराचांदला ए देशी ॥ चंद्रानन जिन सांभलिये अरदासरे, मुज सेवक भणी. छे प्रभुनो विश्वासरे चंद्रानन जिन ॥१॥ ___ अर्थ:-हे भगवंत ! आप पी तेमज अरूपी निकटवर्ती तेमज दूरवर्ती, सूक्ष्म तेमज स्थूल, सर्वे पदार्थोने तेना त्रैकालिक गुण पर्याय सहित एक समयमा हस्तामलक्वत् प्रत्यक्ष जाणनार होवाथी सर्वज्ञ, तथा अनंत आनंदमा पोताना गुणपर्यायोमा निरंतर तल्लोन-स्थिर होवाथी अन्य कोइपण द्रव्य पर्यायमां आपनो राग द्वेषरूप परिणाम थतो नथी तेथी वीतराग छो, भने सर्वज्ञ तथा वीतराग होवाथी मापनी दिव्य वाणीमा प्रत्यक्ष परोक्षादि कोईपण प्रमाणवडे विसंवाद श्रावी शकतो नथी, कोईपण प्रकारना रंचमात्रपण दूषणने अवकाश मलतो नथी; माटे हे प्रभु ! आपज था भीषण भवससुद्रमाथी भव्य समूहने उद्धारवा समर्थ छो. पण आपथी विमुख बुध कपिलादि अन्य तीर्थीश्रो के जे तेभोनां प्राचरण तथा वाणीवडे अज्ञान तथा