Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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साधन सत्यता ॥ देवचन्द्र जिनचन्द्र, भक्ति पसाये हो होशे व्यक्तता ॥ ८॥
अर्थः-शुद्धात्म धर्म (सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यकचारित्रादि) नी रुची तथा अनुभव जे वडे थाय ते सर्व साधनो सत्य छ, तथा हितकारी छे. शुद्धात्म धर्मना अनुभवना हेतुरुपे आदरेला सर्वे बाह्य योगरूप साधनो सत्य तथा हितकारी छे. श्री देवचन्द्र मुनि कहे छे के हे जिनचन्द्र ! श्रापनी भक्ति पसाये अर्थात् श्रापनी अाज्ञानुं सेवन कर. वाथी (प्राणाकारी भत्तो, प्राणा छेइनो सो अभ. तोत्ती ) मारी सर्व शुद्धास्म संपदा प्रगट थशे. ॥८॥ ( संपूर्ण.)
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॥ अथ श्री षोड़शम नमिप्रभ जिन स्तवनम् ॥ अरज अरज सुणोने रूड़ा राजोया हो जी ॥ ए देशी ।।
नमिप्रभ नमिप्रभ प्रभुजी विनवू होजी, पामी पामी वर प्रस्ताव ॥ जाणोछो जाणाछो विण विनवे हो जी, तोपण दास स्वभाव ॥ नमिप्रभ० ॥१॥