Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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२२६ अनंता गुणाविभागरुप संपत्तिवडे तथा पर्यायरुप प्रजावडे ? भरेला छे.. .
एवा पापना अनुपम देशना, तथा तेमां वसती सरल प्रजाना रक्षण निमित्ते आपना मित्र तथा प्रधाने मली पोताना अत्यंत वल तथा चातुर्यवडे चारित्ररूप अत्यंत मजबूत तथा अभंग किल्लो बांध्यो छे. हे भगवंत ! एवा अलौकिक राज्यना श्राप स्वामी बन्या छो. एहQ अलौकिक राज्य के जे मोह राजाए अनादिथी पोताना कबजे करी राख्यु हतुं लेने पापे की रीते प्राप्त कयु ? -" आतम शक्त हो परजय संचर्याजी” अन्यनी मदद शिवाय मात्र पोतानी अात्मशक्ति स्फुरायमान करी सम्यकदर्शन मित्र, तथा स्मयक्झान प्रधानने मा राखी मोहशत्रुने पराभव करवा रणभूमिमां प्रवेश कर्यो । ३ ।। ४ ॥ धर्मक्षमादिक सैन्य, परिणति प्रभुताहो तुज बल आकरांजी। तत्त्व सकल प्रागभाव, सादि अनंतीर रीते प्रभु धरयोजा।।हुं०॥५॥ ___ अर्थः--मोहराजाला लश्करने शीघ्रमेव नाश करनारा "क्षांति, मार्दव आर्जव, मुत्ति, तब, .