Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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एक-तर्क अविचार ते, शुक्ल बीजउ पावइ लो॥ अहो ॥५॥ अंतर्मुहुरत आयुप थकइ, ध्यान तीजइ आवइ लो । अ०॥ निज गुण मोक्ष प्रावी रह्यां, दोय योग रूधावइ लो॥१०॥६॥ "एक योग वादर अछइ, तेहिज पिण रोकइ लो । सुक्ष्म उसास नीसास सू, निज रूप विलोकइ लो ॥७॥ सूक्ष्म उछास लेतउ थकष्ठ, निश्चय पद धारइ लो । अ०। सूक्ष्म-क्रिया प्रतिपातीयउ, तीय शुक्ल संभारइ लो । अ० ॥८ शैलेशी करतां थकां, सब जोग खपाइ लो ॥ अ० ॥ पांच अक्षर परिणाम मइ, अद्भुत पद ध्यावइ जो ॥१॥ 'परबत जिम देह छोडि नइ, ते मोक्षइ जावइ लो ॥ अ० ' हस्व वरण इम पांचमइ, चरथउ शुक्ल भावइ लो ॥ १० ॥ दोय ध्यान सब जीव तउ, निश्चय करि ध्यावइ लो । अ० धर्म ध्यान भव्य जीव जे, तेहिज ध्रुव पावइ जो ॥११॥ शुकल ध्यान पंचम अरइ, निश्चय करि नावइ लो। अ० पहिलो संघयणनो धणी, शुकल ध्यान ज पावइ लो ।।१२।। श्री शीतल जिन वंदतां, दोय ध्यान राखइ लो । अ०॥ धरम भ्यान मन भावीयइ, देवचन्द्र इम भाखइ लो ॥१३॥
पास जिणंद जुहारीयइ ए ढाल ध्यान च्यार मइ वर्णव्या, श्री श्रागमनइ अनुसारइ रे ।' भात रौद्र नइ परिहरि, भविक धरम चित धारइ रे ॥१॥ श्री शीतल जिन वंदना, हुं करूं सदा वार वार रे ।। मषियण प्राणी जे हुवइ, ते तीजउ ध्यान संभारइ रे ॥२॥
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