Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner

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Page 330
________________ २६४ ४: 165 63 1 ७ अष्ट रुचि सज्झाय | सुरपति तदेव अमित गुणी. श्री भाव प्रकाशक दिनमणी. 1 शासनपति वीर जिनेश ना, गणधर सोहम शुचि मना ||१|| 1 1 3 शुचिमना' सोहम सीस जंबू, 'भणी सीख कही ' भली । सुणों श्रमतत्व रोचक, करी निज मंति निरमली ॥ r आठ कारण मोक्ष' साधक, "परम संवर पद तणौ । करौ आदर अतिहि उद्यम, यतनं साधनं अति घणौ ॥ - अभिनवा गुणनी वृद्धि थास्यै, 'दोष क्षय जासै "सबै । ते माटि सेवौं सूत्र रंगा, 'सुख' लहौं' जिम' भव भवै ॥२॥ ī, ' T" ० } 1 1 ' अनुभव रंगीले आमा - ए डाल 15 I 111 1 I }, १ पहिल कारण सेविये, भारखे वीर जिणंद- रे । नित नित नवु' नवु सांभलौ, शुद्ध घरम सुख कंद, रे ॥ थास्यै परम आणंद रे,ऊगे ज्ञान दिराद रे, फल के अनुभव चदरे||१९|| आरणा रंगी रे 'आतमा, तजिसु सर्व प्रमादु रे करि आर्गम आस्वाद रे, वसि निज तत्व प्रसाद रे ! आंकणी ॥ गीतारथ श्रुत-घर मिले, आणी श्रुति बहु मान रे, नय निक्षेप प्रमाण थी, अभ्यासौ श्रुत ज्ञान रे ॥ भजितुं जिन वर आणरे, पामै सुखनिरवा गरे, परममहोदय ठाणरे ||२|| बीजे थानक श्रुत तणौ, लाधो तस्त्र विचार रे । · } 1 1 + स्व पर समय निरधार थी, चउ अनुयोग प्रकार रे || ज्ञेय "पणे सर्व भाव 'रे, रहयो आत्म स्वभाव रे, तनि पर " A समय विभाव रे ॥३॥ 2 " ܀

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