Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner

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Page 318
________________ २५२ सद्गुरु, मनसुख " तणो आश्रय लही । संतोष " प्रेमे अर्थ आ, मैं लख्यो 'दोहदमां' तेम गुण निधि " "" रही; उगणीश छासठ साल असो, शुक्ल सातम शशि दिने, जिनराज भक्ति पसायथी, पूर्ण थयो उलसित मने ||| हे भव्य शुभ मति विनति या, मम क्षमायुत उरमां धरी, गुण क्षीर ग्रहजो हंस पेठे, नीर अवगुण परिहरी; भरपूर सुखप्रद ग्रन्थ श्र, शशि सूर सम शाश्वत रहो, वचन मनन अनुभव करी, भवि शशि रमा अनुपम लहो ॥ ५ ॥ T

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