Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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श्रीमद् देवचन्द्रजी रचित अप्रकाशित स्तवन संग्रह
संग्राहक-अगरचंद नाहटी
१ ऋषभ स्तवन । ढाल-मोरा आतमराम, कईयइ दरसण पास्यु ए देशी ॥ मोरा ऋषभ जिणंद, कईयइ दरसण पास्यु ।। मो० ॥ सिद्धाचलनी पाजइ चढतां, मरु देवा सुत ध्यासु । घणा दिवस नो अग छमाहो, ते पामी सुख भास्यु । १ भोगा निरमल नीरइ प्रभु नइ अगइ, कहीय(इ) न्हवण करास्यू ।
केसर चंदन मृगमद घसि नइ, तोरइ देह लगास्यु ।।२ मो० ॥ • पूज करी नइ प्रालि बइसी, पांचे छंग नमास्यु।
भाव धरीनइ मननइ रंगइ, नाभ नंदन गुण गास्यु ॥३ मोगा पार २ तुम मुख निरखी, हीयडइ हरखति थास्यु। . तोरो ध्यान धरी अति सारो, सकल मिथ्यात विनास्यु ॥४मो॥ आठ करमनो अत करीने, दुरगति दूरि गमास्यु। चंद कहा इम मन नै रंगइ, तुमध्यांनइ मन लास्यु।५ मो इनि
( देवचंद्रजी लिखित पत्र में होने से उनका रचित संभव है।
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