Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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२५१
चालावबोधकार प्रशस्ति ॥ कलश ॥ हरिगीत छंद ॥ विहरमान जिनंद मंगल, कंद ज्ञान दिनंद जे, विकसावता नय कर समूहे, भव्य उर अरविंद जे; उपशम सुधा सागर उलासन, पूर्ण अनुपम चंद जे, भवदंद फंद निकंदि पायक, शुद्ध परमानंद जे ॥१॥ मोह मदिरामा मचेला, कुमति मत मातंगना, मह गंजवा बल भंजया, बलवान ग्रभु पंचानना ते तीर्थनायक तत्त्वदायक, चीश जिनवर गुणमणी, " देवचंद्र गणि" पवित्र मतिए, स्तव्या गुणमाला
भणी ॥२॥
ते स्तवन वीश विषे अतिशे, घोध अनुपम वरणव्यो, त्यां चित रमण हित मुज मनोरथ, अरथ लखवानो थयो; मधु मासमां अति मधुर स्वरथी, कोकिला जे गाय छे, ते तो खरेखर भाम्र तरुना, पुष्पनोज पसाय छे ॥ ३ ॥
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