Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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२१३ एकस्व महित होवाथी आपना आत्म अंगमा कोइ पण काले पंचमात्र पण क्षय थवानो संभव नथी, श्राप अक्षय पदमा नित्य विराजमान छो. ____ सर्वे द्रव्यो पोतानी सत्ताभूमिमां पोताना गुण पर्यायोना स्वामी पणे वर्त्तवाने सदा काल सत्ताधारी छे. कोइ पण अन्य द्रव्य तेमां प्रवेश करदानेज समर्थ नथी तो श्रापने जीतवानी शं वात १ माटे हे भगवत ! श्राप सदा अपराजित ( अजय ) छो. __ वली श्रापर्नु वीर्य क्षायिकभावे होवाथी आप अत्यंत धीर वीर छो. जेम सूर्यना प्रताप सामे अंधकार अत्यंत प्रभाव पामे छे, तेम आप श्रीना क्षायिकवीर्य जन्य धीर वीरताना, प्रतापथी अापना कर्म शत्रुउं अत्यंत अभावने प्राप्त थई गया छे. ___ जो के सर्वे द्रव्यो वस्तुतः अविनश्वर छे. तथापि अनेक पुदगलोथी वनेला शरीरमांज्यांसुधी अहं ममत्व बुद्वि होय छे स्यां सुधी ते शरीरनो नाश थतां प्रास्मा पोतानो नाश मानी नाशपणाना दुःखने अनुभवे छे. पण आपे पोताना आत्म अंगमा मात्मपणु जाण्युं स्वीकायु, पोनाना एकत्व पिंडना अनुभवी थया. तेथी विनाशपणानो प्रसंग नाथ