Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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२०१ निर्जराने आदी शक्यो नहि. ___ आस्रव-" निरास्त्रव संवित्ति विलक्षण
शुभाशुभ परिणामेन शुभाशुभ कर्मागमन मात्रवः”-शुद्धात्म अनुभूतिथी विपरित जे शुभाशुभ परिणाम बडे ज्ञानावरणीयादि कर्मनु आगमन (प्रावधू) ते आस्रव है. मिथ्यात्व अविरति कषायादि जो आस्माना अशुद्ध परिणाम ते भावास्रव छे अने ते भावास्त्रवना निमित्त वडे ज्ञानावरणी यादि कर्म दलनुं श्रावq ते द्रव्यास्रव छे.
बंध-बंधातीत शुद्धात्मोपलम्भ भावना च्युत जविस्य कर्म प्रदेशः सहसंश्लेषो बन्धःमिथ्यादर्शनाऽविरति प्रमाद कषाय योगा बन्ध हेतवः" मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय अने योग वडे पूर्व कर्म साथे नवा कर्मनो संबंध (दृढ मलq ) ते बंध छे. ते बंध चार प्रकारे छे-प्रकृति, स्थिति, अनुभाग अने प्रदेशबंध. तमां योग वडे प्रकृतिबंध तथा प्रदेशबंध थाय छे अने कषाय बडे स्थिति बंध तथा अनुभागबंध थाय छे.
विशेष विवेचन- पिडिणीअत्तण निन्हव,