Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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१२ ज्ञानादिक गुणनी हो, के वर्तना जीव प्रते ॥ धर्मादिक द्रव्यने हो, के सहकारे करते ॥५॥
अर्थ:-त्रिलोक पूज्य श्री जिनेश्वर देव एम कहे के के एक कार्य पणे परिणमनारा अनंता छत्ती पर्यायनो समुदाय ते गुण छे. जेम जाणवारूप सामर्थ्य छे जेमां एका अविभागी पर्यायनो समुदाय ते ज्ञान गुण, देखवारूप सामर्थ्य छे जेमा एवा अविभाग पर्यायनो समुदाय ते दर्शन गुण, परिणामालंबन रूप कार्य सामर्थ्य छ जेमा एवा अत्रिभागी पर्यायनो समुदाय ते वीर्यगुण, विगेरे एम 'हरेक द्रव्यना प्रति प्रदेशे पोतपोतानु एक कार्य ' करवानुं सामर्थ्य धरनारा अनंता अविभागरूप पर्यायनो समुदाय ते गुण छे. जीवद्रव्यना ट्रेक प्रदेशे जाणवा रूप कार्य करवातुं सामर्थ्य धरनारा अनता विभाग पर्याय छे तेनो समुदाय ते ज्ञान मुण. एम ज्ञानादि अनंत गुणनी वर्तना जीव द्रव्यमां छे. ययुक्तं-नय चक्र सारे-" तत्रैकस्मिन् द्रव्ये प्रति प्रदेशे स्त्र स्व एक कार्य करण सामर्थ्य रूपा अनंता अविभाग रूप पर्याया स्तेषां समुदायो गुणः भिन्न कार्य क