Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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शक तेम नथी मेथी हे भगवत ! श्रापज पूर्णानंद छो. ययुक्तंश्लोकः-" पूर्णता या परापाधेः सा याचितक
मंडनं । या तु स्वाभाविकी सैव जात्यरत्नविभानिभा ॥ अवास्तवी विकल्पैः स्यात् पूर्णताब्धे रिबोर्मिभिः ॥ पूर्णानंदस्तु भगबांस्तिमितादधिसन्निभः ॥”
तथा हे भगवंत ! श्राप स्वरूप भोगी छो; मात्र ज्ञानदर्शन चारित्रादि पोताना शुद्ध निरूपाधिक गुण पर्यायने भोगववा बाला छो तेथी श्राप सदा निष्कंटक छो, तथा हे भगवंत ! आप मन वचन तथा कायानी क्रियाना श्रकर्ता थया छो, योगर्नु ममत्व सपेदा दूर की, छे तेथी आप अयोगी छो, वली आप सदा उपयोगी छो, ज्ञानोपयोगनो घात करनार ज्ञानावरणीय कर्म तथा दर्शनोपयोगनो घात करनार दर्शनावरणीय कर्म ए नेनो श्रापे सत्ता सहित सर्वथा नाश कर्यो छे माटे हवे श्रापना उपयोगने कोइ पण स्खलना पमाडनार नथी तेथी आप सदा उपयोगी छो, सर्वे समय शुद्ध ज्ञानदर्शनोपयोगमां निरंतर वर्तो छो; एम हे भगवंत !