Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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सर्वे देवोमां चंद्रमा समान हे अरिहंत भगवंत ! आपनीज सेवा सर्वे क्लेशथी मुक्त करी परमानंद परम सुखनी दातार छे । १ ॥
॥ संपूर्ण ॥
अथ चतुर्दशम श्री भुजंग स्वामी जिन स्तवनम्।
॥ देशी । लुअरनी ॥ पुष्कलावइ विजये हो, के विचरे तीर्थपती । प्रभु चरणने सेवेहो, के सुरनर असुर पती। जसु गुण प्रगट्या हो, के सर्व प्रदेशमा । आतम गुणनी हो, के विकसी अनंत रमा ॥१॥
अर्थः-पुष्कलावर्त विजयमा विचरता सम्यक्ज्ञान दर्शन चारित्र रूप तीर्थना प्रगट करनार, फेलावनार तीर्थपति श्री भुजंग स्वामी प्रभुने कषाय तथा अज्ञानथी बिलकुल रहित, परम पवित्र परमानंद स्वरूप जाणी, मोक्ष मार्गमां गमन करवा कुशल तेमना पवित्र चरण युगलने महान् रिद्धि सिद्धिना धारक सुर असुर तथा मनुष्यना इंद्रो, विषय तथा