Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
View full book text
________________
गणे छे माटे तेमना अभिप्राये नैगमादि त्रण नय द्रव्यार्थिक अने रूजुसूत्रादि चार नय पर्यायार्थिक छे. द्रव्यने सामान्यपणे निरूपण करनारा प्रमाताना अभिप्रायो जेश्रोनो भाधना चार नयमा समावेश थाय छे ते द्रव्यार्थिक छे अने जे अभिप्रायो शब्दना अर्थनी मुख्यता धरावे छे ते शब्दादिक त्रण नय पर्यायार्थिक छे माटे आदिना चार नय ते अविशुद्ध छ भने शन्दादिक ऋण नय ते विशुद्ध के उक्तंचआद्य नय चतुष्टय माविशुद्ध पदार्थ प्ररूपणा प्रवणत्वात् अर्थ नया नाम द्रव्यत्व सामान्य रूपा नयाः शब्दादयो विशुद्ध नयाः शब्दावलंवार्थ मूख्यत्वात् तथा च स्याद्वामंजरौ ये केचनार्थ, निरूपण प्रवणाः प्रमात्र भिप्रायास्ते सर्वेऽप्याद्यनय चतुष्टयेऽन्तर्भवति ये च शब्दविचार चतुरास्ते शब्दादि नय त्रय इति ॥ ॥ तथा रत्नाकरावतारिका ग्रंथे " द्रवति द्रोष्यति अद्रुद्रवत् तांतान् पर्यायानिति