Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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तथी कार्य सिद्ध थइ गया पछी ते दंडादिमां कारण पंद नथी. कारण के कार्य कारण एक समये छे पण जे कार्यानंतर तथा प्रथम प्रयुक्त काले दंडादिकने निमित कारणं कहे छे ते मात्र नैगम नयनो मत जावो. एम कार्यना स्वरूपनो जाणनार कार्यनो अभिलाषी कर्त्ता साचा उपादान तथा निमित्तना योगे कार्य सिद्धि पामें पण कारण वगर. कार्य सिद्धिनो श्राकाश पुष्पवत् अभाव जाणवो. तेथी हे प्रभु ! ज्ञान पूर्वक निर्धार करतां माहरा परमात्म सिद्धिना पुष्ट हेतु आपने जाणी आपनुज शरण अंगीकार करुं लुं. निमित्त कारणना बे भेद छे (१) पुष्टनिमित्त (२) अपुष्ट निमित्त "कार्यस्य आसन्न निमित्तं इति तदेव पुंष्टं दूर तरं कारण नैमित्तिकं तत् अपुष्टं " अर्थात् साध्य धर्म जेर्मा प्रगट - विद्यमान होय तथा जेमां 'कदापि कार्यनो ध्वंसक भाव न होय ते पुष्ट निमित्त जा
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वं. जेम नोकर भगवंतमा परमात्म पद प्रगटविद्यमान के था परमात्म पदना घांतक भावनो जेमां सर्वधः प्रभाष के माटे तीर्थंकर भगवंत परमात्म वामां पुष्ट निमित्त के. एम. जाणवु.
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