Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
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कल्याणकारी सिद्धिपदं योगना नाथ- मालीकप्रणेता यथार्थपणे प्रगट करनार छो. तथा हे नाथ ! आपना मन वचन छाने काथ ए त्रणे योग क्षेमंकर, कल्याणकारी, पाप क्लेशथी मुक्त करनार छे. अने संसारी जीवोए मन वचन काया स्त्री पुत्र धन कुटुंबादि अनेक योग कर्या ते योग बहु वार विनाश धया-क्षेम कुशल न रह्या. पण प्रभुजी शुद्धात्म अनुभव योग करावी शाश्वती केवलज्ञानादि लक्ष्मीनो शिवयोग कराबो छो माटे योगक्षेमंकर छो ||४||
रक्षक जिन छ कायना, वली मोह निवारक स्वामी रे || श्रमण सघ रक्षक सदा, तेणे गोप ईश अभिरामरे | तेणे० अरि० ॥ ५ ॥
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अर्थ:- जे भज्ञान विषय अने कषायादि दोषोधी निवृत्त थया नधी एवा कुदेवादि " अहिंसक पदन योग्य नथी कारण के ते सर्वे जीवस्थान तथा सर्वे जीवोना द्रव्यभाव प्राणने तथा द्रव्य भाव प्राणनी हिंसाना हेतुने तथा ते हेतुना प्रतिकारने यथार्थ जाणता नथी तथा विषय कषायादि सहित होषाथी प्रमाद अवस्थामा अनेक जीवना द्रव्यभाव प्राणने हणी परने तथा पोताना श्रात्माने दुःखदायक