Book Title: Viharman Jina Stavan Vishi Sarth
Author(s): Jatanshreeji Maharaj, Vigyanshreeji
Publisher: Sukhsagar Suvarna Bhandar Bikaner
View full book text
________________
एक विगेरे अनेकांते गधेषीये तो बाकी रहेला बीजा थर्मोनी पण सूचना थाय एम सर्वे वस्तु स्थाद्वाद अनंत धर्मात्मक छे तेथी स्याद्वाद वडे वस्तुमा रहेला अनंत धर्मनो बोध थाय. ___ बली अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, अगुरुलघुत्व. प्रमेयत्व, सत्व, ए व मूल सामान्य तथा अस्तिस्वभाव, नास्तिस्वभाव नित्यस्वभाव, अनित्यस्वभाव, एकस्वभाव, अनेकस्वभाव, भेदस्वभाव, अभेदस्वभाव भव्यस्वभाव, अभव्य स्वभाव, वक्त. व्यस्वभाव, श्रवक्तव्यस्वभाव, परमस्वभाव विगेरे उत्तरसामान्य स्वभाव वस्तुमा अनंता छे तथा जीना चेतनता अनुयायी अनेक विशेष स्वभाव छे तेम धर्मास्तिकायमां गति सहायादि, तथा अधर्मास्तिकायमा 'स्थितिसहाय आदि तथा आकाशमा अवगाहदान आदि तथा पुद्गलमां पूरण गलनादि अनंत धर्मो छेते अनंत सामान्य स्वभाव तथा विशेष स्वभावनो आधारभूत जे अस्तित्वधर्म ते सधैं द्रव्यमां सदाय समकाले परिणमे के. उक्तंच. " नित्यत्वादीनां उत्तर सामान्यानां परिगामिकत्वादीनां विशेष स्वभावानामाधार