Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितम्
श्री संभवनाथ चरित
तृतीय पर्व
प्रथम सर्ग
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जो तीन लोक के नाथ है, जिनका जन्म पवित्र है, जो संसार और कर्म - बन्धनों का नाश करने वाले हैं, उन्हीं जिनेश्वर भगवान् श्री सम्भवनाथ स्वामी को नमस्कार कर भवचक्र नाशकारी भगवान् का जीवन वर्णन करता हूँ । ( श्लोक १-२ ) धातकी खण्ड द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में क्षेम के निवास रूप क्षेमपुरी नामक एक प्रसिद्ध नगर था । उस नगर में जैसे मेघवाहन ही पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं ऐसे विपुल वाहन नामक एक सद्विवेचक राजा थे । माली जिस प्रकार झाड़-झंखाड़ को उखाड़ कर उद्यान की रक्षा करता है उसी प्रकार वे भी प्रजा के समस्त दु:ख दूर कर उसकी रक्षा करते थे । नदी जिस भांति पथिकों की क्लान्ति दूर करती है उसी प्रकार उनकी सन्नीति प्रजा को सदैव प्रफुल्लित रखती थी। उनका न्यायानुसार शासन इतना दृढ़ था कि वे स्वयं के या अन्य के द्वारा उसका व्यतिक्रम नहीं होने देते थे । वैद्य जिस प्रकार रोगी की चिकित्सा में रोग निवारण के लिए यथोचित कठोर व्यवस्था का अवलम्बन करते हैं उसी प्रकार वे अपराध के गुरुत्वानुसार अपराधी के दण्ड की व्यवस्था करते थे । जो पुण्यवान् थे, गुणानुयायी थे उन्हें पुरस्कृत भी करते थे । वास्तव में भेदकारी के इस प्रकार भेद करने से ही श्री वृद्धि होती है । अन्य के लिए जो मान का कारण था वह उनमें मान उत्पन्न नहीं करता । बर्षा का जल नदी की भांति समुद्र के जल की अभिवृद्धि नहीं करता ।
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(श्लोक ३-१० )
जिस प्रकार मन्दिर में भगवान् का निवास रहता है उसी प्रकार उनके अन्तर में सर्वज्ञ सर्वदा निवास करते थे । जिस भांति