Book Title: Traivarnikachar Author(s): Pannalal Soni Publisher: Jain Sahitya Prakashak SamitiPage 20
________________ विषय. क्षेत्रपालाचैन और वास्तुदेवतार्चन मंत्र तिथिदेवतार्चन और वारदेवतार्चन मंत्र गृहदेवतार्चन विधान छठा अध्याय । जिनमंदिरा नेर्माण -- प्रारंभ कर्णपिशाचिनी यंत्र मंत्र और होम वास्तुशास्त्रानुसार जिनमंदिर निर्माण जिनमंदिर के योग्य भूमि भूमि - परीक्षा शुभाशुभ निर्णय अस्त्रमंत्र और अनादिमंत्र पातालवास्तु-पूजन पायाभरने का क्रम मंदिररचनाक्रम और शिलानयन जिनप्रतिमालक्षण सिद्धादिप्रतिबिंबविधि यक्ष यक्षी आदिकी प्रतिमा प्रतिमाकी दृष्टि और हीनाधिक अंगोपांगका फल प्रतिष्ठोपदेश घरमें रखने योग्य प्रतिमा मंदिर वन्दना आदिका क्रम पंचायती मंदिर गमन विधि जिनमंदिर को नमस्कार | जिनमंदिर का अवलोकन जिनमंदिर की स्तुति मंदिर प्रवेश जिन स्तुति द्वारपालानुज्ञा मंत्र चैत्यालयप्रवेश और गंधोदक ग्रहण मंत्र (१३) पृष्ठ. १५३ १५४ - १५४ विषय. नमस्कारविधि नमस्कारके आठ अंग नमस्कार के पांच अंग वर्धशयन नमस्कार अष्टांग नमस्कारविधि १५६ जिंनपूजा, श्रुतपूजा, गुरुपूजा और सिद्धपूजाका उपदेश श्रुतपूजा और गुरूपास्तिकथन १५६ १५७ १५७ पूजा के पांच भेद नित्यमह पूजा आष्टान्हिक और इन्द्रध्वजपूजा चतुर्मुख पूजा १५८ १५८ कल्पद्रुम पूजा १५९ १५९ १५७ १५८ नित्य नैमित्तिक पूजा अष्ट द्रव्यार्चन फल १६० क्षेत्रपाल आदिका सत्कार १६१ श्रुतपूजा और गुरुपूजा नित्यव्रत ग्रहण १३१ व्रत-माहात्म्य १६१ गुरु आदिको नमस्कार १६२ आशीर्वाद प्रदान १६२ व्यावहारिक पद्धति १६३ शास्त्र सुनना - सुनाना १६३ घरपर आगमन १६३ पुन: स्नान जिनपूजा आदि . १६४ दान-प्रदान पात्रोंके भेद १६४ १६५ धर्मपात्र के भेद प्रत्येकके लक्षण १६५ भोगपात्र और यशः पात्रका लक्षण सेवापात्र और दयादान १६६ पात्रदान - फल • पृष्ठ. १६६. १३८ १६९ १६९ १६९ १७० १७० १७० १७१ १७१ १७१ १७२ १७२ १७२ १७२ १७३ १७३ १७३ १७३ १७४ १७४ १७५ १७६ १७६ १७६ १७६ १७६ १७७ १७८ १७८ १७९Page Navigation
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