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२० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन किया एवं उनकी उपासना के लिए मन्दिर की निर्माण विधि को प्रस्तुत किया। मोजेज ने यह भी कहा कि मुझे ईश्वर ने धर्मस्थापना के हेतु आज्ञा दी है। अतः जो ईश्वर की वाणी को मानने से इनकार करेगा, वह दोषी ठहराया जावेगा। इस प्रकार यहदी धर्म में मोजेज ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में धर्मसंस्थापना करते हैं। धर्मसंस्थापना के रूप में ईश्वरीय प्रतिनिधि की यह अवधारणा अवतार से किञ्चित् भिन्न होकर भी बहुत कुछ समानता रखती है। १३. ईसाई धर्म और प्रभु ईसामसीह
ईसामसीह को ईसाई धर्म का धर्मप्रवर्तक माना जाता है । ईसा का जन्म आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व यहूदियों के बैतलहम नामक नगर में हुआ था, इनकी माता का नाम मरियम था। यूसुफ ने जब मरियम से विवाह किया तो स्वर्गदूत ने उससे स्वप्न में कहा कि "मरियम पुत्र को जन्म देगी, तू उसका नाम ईसा रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।"१ ईसा के जन्म के तत्काल बाद पूर्व से कई ज्योतिषी वैतलहम पहुँचे और उन्होंने राजा हेरोदेस से पूछा, “यहूदियों का राजा, जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है ? क्योंकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और हम उसको प्रणाम करने आये हैं ।"२ यह सुनकर स्वार्थी और क्रर हेरोदेस बहुत घबरा गया और उसने सभी बच्चों को मार डालने का आदेश दिया ताकि उसका शत्रु बड़ा होने से पहले ही समाप्त हो जाये। यूसुफ अपने पुत्र ईसा को लेकर मिस्र चले गये। हेरोदेस की मत्यु के बाद ईसा नासरत में बस गये। ईसाइयों का विश्वास है कि ईसा को यूहन्ना ने यरदन नदी में बपतिस्मा दिया, बपतिस्मा के बाद ईसा ने परमेश्वर की आत्मा को कबूतर की भाँति अपने ऊपर आते
१. ईसामसीह की वाणी, पृ० १ २. वही, पृ० १ ३. ईसा की जन्म कथा की बहुत कुछ साम्यता कृष्ण की जन्म कथा में खोजी
जा सकती है-जिस प्रकार क्रूर हेरोदेस बच्चों के विनाश का आदेश देता है उसी प्रकार कंस भी देवकी के सभी पुत्रों को मार देना चाहता है । जिस प्रकार यूसुफ अपने पुत्र को लेकर मिस्र चले जाते हैं वैसे ही कृष्ण को गोकुल भेज दिया जाता है।
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