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२४६ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
ऋग्वेद में भू शब्द से विष्णु के तीन पादों का क्रम मिलता है जिसके कारण उनको त्रिविक्रम कहा गया है। कुछ मन्त्रों में विष्णु को जगत् का रक्षक एवं समस्त धर्मों का धारक कहा गया है । विष्णु के कार्यों के बल पर ही यजमान अपने व्रतों का अनुष्ठान करते हैं, वे इन्द्र के सखा कहे गए हैं । स्तुति करने वाले और मेधावो मनुष्य विष्णु के उस परम पद से अपने हृदय को प्रकाशित करते हैं। एक मन्त्र में विष्णु से उन्मत्त शृंगवाली और शीघ्रगामी गायों के स्थान में जाने के लिए प्रार्थना की गई। इसी प्रकार एक मन्त्र में देवताओं को विष्ण का अंश कहा गया है। इन्द्र जब शम्बरासुर को ९९ दृढ़ पुरियों को नष्ट करते हैं तब विष्णु, उनकी सहायता करते हैं।'
महाकाव्य काल में विष्णु के अवतरण का मुख्य प्रयोजन देव-शत्रु का वध करना है। किन्तु गोस्वामी जी के अनुसार विष्णु के अवतार राम का मुख्य प्रयोजन विप्र, धेनु, सुर, सन्त आदि सभी के निमित्त असुरों का
१. अतोदेवा अवन्तु नो यतो विष्णु विचक्रमे । पृथिव्याः सप्त धामाभिः
-ऋग्वेद १/२२/१६ २. त्रीणि पदा विपक्रमे विष्णुर्गोपा अदाम्यः । अतो धर्माणि धारयन्
-वही, १/२२/१८ ३. विष्णोः कर्माणि पश्चत य तो प्रतानि चस्पर्श इन्द्रस्य युज्यः सखाः ।
-वही, १/२२/२९ ४. तद् विप्रातो विपन्यवो जागृवंशसः समिन्यते । विष्णोर्यत्परमं पदम् ॥
-वही, १/२२/२१ ५. ता वां वास्तून्युशासि गमध्य यत्र गावौ भूरि ऋङ्गा अयासः । ____ अत्राह तदुरुगायस्य वृष्णः परमं पदमव भाति भूरि ।।
-वही, १/१५/४६ ६. अस्य देवस्य मीड हुषो वया विष्णोरेषष्य प्रमृयेहविभिः।। विदेहि रूद्रीं रुद्रियं महित्यं यासिहं वत्तिरश्विनाविरावत् ॥
-वही, १/४०/५ ७. ऋग्वेद, ९/९९/५ ८. 'वधाय देव शत्रणां नृणां लोके मनः करु । - एव मुक्तस्तु देवेशो विष्णुस्त्रिदशपुंगवः ।।'
-वाल्मीकि रामायण, १/१५/२५
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