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तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा : तुलनात्मक अध्ययन : २८१ जो हिन्दू धर्म का अवतार का प्रयोजन है, अर्थात् अधर्म का नाश करना और धर्म की स्थापना करना।' इस्लाम धर्म में पैगम्बर को परम्परा का का शुभारम्भ मुहम्मद से नहीं हुआ बल्कि सर्वप्रथम खुदा ने आदम के नफ्स् का निर्माण किया तदनन्तर उसी की अनुकृति स्वरूप महम्मद ने नफ्स् को बनाया । इस प्रकार इस्लाम धर्म में भी आदम से लेकर मुहम्मद तक पैगम्बरों की एक लम्बी परम्परा है जो आंशिक रूप से हिन्दू धर्म की अवतारवाद की परम्परा के अनुरूप है। हिन्दू परम्परा में "गीता" के कृष्ण स्वयं अवतरित होकर धर्म की स्थापना एवं साधुजनों की रक्षा करते हैं उसी प्रकार इस्लाम धर्म में कुरान के अनुसार अल्लाह समयसमय पर पैगम्बरों को भेजते हैं और वे हर कौम के लोगों को उनके दुष्कृत कर्मों के परिणामों से डराते हैं, हिदायत देते हैं और सारे कौम के लड़ाई झगड़ों का फैसला भी करते हैं। इस प्रकार स्थानगत और संस्कृतिगत वैषम्य होते हुए भी आन्तरिक एकता लक्षित होती है।
इस समानता के बावजूद भी इस्लाम धर्म में पैगम्बर के अवतरण या जन्म हिन्दू परम्परा के अवतार से भिन्न है । हिन्दू धर्म की अवतार की अवधारणा ईश्वर के जन्म या अवतरण को मानती है, जबकि इस्लाम धर्म में पैगम्बरवाद हुलूल या जन्म विरोधी होने के कारण अल्लाह का जन्म या अवतरण स्वीकार नहीं करता है। सम्भवतः इसीलिए इस्लाम धर्म में महम्मद को अल्लाह का अवतार न कहकर, उनको पैगम्बर कहा है । लेकिन फिर भी अवतार से साम्य रखनेवाले "निर्माण", प्राकट्य और प्रतिरूप शब्द इस्लामी सम्प्रदायों में प्रयुक्त हुए हैं। शेख शाहबुद्दीन के अनुसार अल्लाह ने अपने स्वरूप से आदम का निर्माण किया। इन्होंने आदम को ब्रह्मा का प्रतिरूप माना है। इस प्रतिरूपता के सिद्धान्त में हिन्दू अवतारवाद में गाथा को जो कल्पना है उसी का पुट है मुस्लिम सूफी चिन्तकों ने प्रतिरूपता की अवधारणा को अपनाया है। वे भी
१. स्टडीज इन इस्लामिक मिस्टी सिज्म, पृ० १०६ २. वही, प० ११९ कु० २, सू० ४८ ३. कुनिशरीफ, प० ३६१ सूरा १० आयत ४८ : ५० ४१९, सू०१३ आ०
९; पृ० ७२३ सू० ३५ आ० २५ ४ दी अवारिफुलामा रिफ पृ० १२५ : द्रष्टव्य-मध्यकालीन साहित्य में
अवतारवाद, पृ. २६४
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