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२७८ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
अवतरण है, जबकि प्रत्येक तीर्थङ्कर एवं बुद्ध भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व होते हैं, जो कुछ पूर्व काल में हो चुका है वही परवर्ती काल अथवा भविष्य में बुद्ध नहीं होता। बल्कि एक नया व्यक्तित्व बुद्धत्व की ऊँचाई पर पहुँचकर नया सन्मार्ग देता है। ____ ललितविस्तर में बुद्धों के सम्बन्ध में जो विवेचन है वह अवतारवाद की अवधारणा के काफी निकट है। जिस प्रकार हिन्दू परम्परा में अवतरित होने वाले रूप को मायिक कहा गया है। उसी प्रकार ललितविस्तर के अनुसार बुद्ध भी नित्यलोक से अवतरित होनेवाले मायिक रूप हैं। जिस प्रकार वैष्णव धर्म में विष्णु को भी समस्त देवताओं का गुरु कहा गया है, उसी प्रकार ललितविस्तर में सम्यक सम्बुद्ध को देवताओं का गुरु एवं भगवान् कहा गया है । जिस प्रकार वैष्णव धर्म में देवता, ब्राह्मण आदि विष्णु से अवतार ग्रहण करने की प्रार्थना करते हैं उसी प्रकार ललितविस्तर में भी भिक्षुगण, मनुष्य और देवता आदि सभी बुद्ध से अवतरित होने की प्रार्थना करते हैं। दोनों में ही अवतार का प्रयोजन भी एक सा ही प्रतीत होता है। जिस प्रकार गीता में अवतार प्रयोजन साधु जनों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म संस्थापना है उसी प्रकार बौद्ध धर्म में भी देवता, बुद्ध से प्रार्थना करते हुए कहते हैं- "हे बुद्ध ! तुम त्रिरत्न के ज्ञाता और मार के संहारक हो। तुम शीघ्र अवतरित होकर जिन और मार को अपने करतल से नष्ट करो और देवता और ब्राह्मणों पर कृपा करने के लिए अवतार धारण करें ।३" ।
इससे यह स्पट लक्षित होता है कि ललितविस्तर नामक बौद्ध ग्रन्थ में बुद्ध के अवतरण की जो कल्पना है उसका वैष्णव अवतारवाद से बहुत साम्य है। ललितविस्तर में बुद्ध के ८४ गुणों का उल्लेख है उनमें कतिपय गुण पौराणिक अवतारों की कोटि के हैं। हिन्दू परम्परा में जिस प्रकार विष्णु प्रत्येक युग में जन्म धारण करते हैं उसी प्रकार बुद्ध भी प्रत्येक कल्प में जन्म धारण करते हैं।
वैष्णव सामूहिक, अवतारवाद के सदृश बौद्ध साहित्य में भी यह मान्यता है कि सैकड़ों देवपुत्र जम्बूद्वीप में प्रकट होकर प्रत्येक बुद्धों की उपासना .
१. गीता, ४/६-७ २. ललितविस्तर, प०२३ ३. वही, पृ० २४ ४. वही, पृ० २५-२८
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