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अवतार की अवधारणा : १९३ देखते हैं कि महाभारत के काल तक मत्स्यावतार का सम्बन्ध विष्णु की अपेक्षा प्रजापति से अधिक प्रतीत होता है।
विष्णुपुराण' में मत्स्य, कूर्म एवं वराह का शरीर धारण करना प्रजापति के द्वारा बताया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि पूरातन साहित्य में मत्स्यावतार का सम्बन्ध प्रजापति से रहा है। आगे चलकर भागवत में चाक्षुष मन्वन्तर के अन्त में जल प्लावन के समय श्रीहरि द्वारा अवतार के रूप में मत्स्य का रूप ग्रहण कर वैवस्वत मनु के रक्षा की कथा मिलती है । पुनः भागवत की दूसरी सूची में मत्स्यावतार से लेकर चाक्षुषमन्वन्तर के अन्त में सत्यव्रत मनु की रक्षा के साथ-साथ वेदों की रक्षा का भी प्रसंग मिलता है। अन्तर केवल इतना है, प्रथम सूची के वैवस्वत मनु के स्थान पर द्वितीय सूची में सत्यव्रत का नाम है। भागवत की तीसरी सूची में भगवान् द्वारा प्रलय के समय मत्स्यावतार लेकर भावी मनु सत्यव्रत, पृथ्वी, औषधि एवं धान्यादि की रक्षा करने का उल्लेख मिलता है। भागवत के आठवें स्कन्ध के २४वें अध्याय में मत्स्यावतार का विस्तार से उल्लेख मिलता है उसमें भी सत्यवत मनु एवं प्रलय कथा का वर्णन है।
मत्स्यपुराण में भी भगवान् हरि द्वारा मत्स्यावतार लेने का उल्लेख मिलता है, वहाँ मत्स्य रूप भगवान् मनु से प्रलय के अनन्तर सृष्टि रचना एवं वेदों के प्रवर्तन की बात कहते हैं।" ___ अग्निपुराण में भी मनु की रक्षा एवं हयग्रीव-वध की कथा मिलती है। स्कन्धपुराण में विष्णु द्वारा मत्स्यरूप लेकर वेदों के उद्धार के लिए शंखासुर का वध करने का वर्णन मिलता है किन्तु पद्मपुराण में विष्णु के मत्स्यावतार का प्रयोजन हयग्रीव के स्थान पर मधुकैटभ का वध करना बताया गया है।
१. विष्णुपुराण १/४/७-८ २. भागवत १/३/१५ ३. वही, २/७/१२ ४. वही, ११/४/१८ ५. मत्स्यपुराण २/३-१६ ६. अग्निपुराण-अध्याय २ ७. स्कन्धपुराण-उत्तरखण्ड ९२/९
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