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अवतार को अवधारणा : १९९
कार सायण ने इन्हें विष्णु से वामनावतार के तीन पग माने हैं ।' तैत्तिरीय संहिता में इन्द्र द्वारा लोमड़ी का रूप धारण कर तीन पगों में सारी पृथ्वी को नापकर देवताओं को दे देने का उल्लेख है। इसी में एक अन्य स्थल पर तीन पग से विष्णु द्वारा वामन रूप धारण कर तीनों लोकों को जीत लेने का उल्लेख है । शतपथ ब्राह्मण में देवासुर संग्राम में असुर विष्णु के शरीर के बराबर भाग देने को तैयार हुए तो विष्णु ने सारी पृथ्वी नाप ली, ऐसा कथानक प्राप्त होता है। विष्णुपुराण एवं भागवत में वामन द्वारा बलि से तोन पग भूमि मांगने का कथानक मिलता है।"
इस प्रकार पौराणिक वामन की अपेक्षा वैदिक वामन का सम्बन्ध विष्णु या सूर्य से अधिक निकट प्रतीत होता है। महाभारत के "नारायणीयोपाख्यान” में विष्णु का सम्बन्ध अदिति और आदित्यों से बताया गया है तो दूसरी ओर देवताओं का कार्य करने के लिए बलि को पाताल भेजने का उल्लेख मिलता है।
इस प्रकार वामनावतार का मुख्य प्रयोजन देवताओं की सहायता करना रहा है।
६. परशुराम अवतार
दशावतारों के विकास क्रम में पांच पौराणिक अवतारों के अतिरिक्त परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि को ऐतिहासिक महापुरुष कहा गया है। इनका विकास क्रम पौराणिक अवतारों की अपेक्षा विशिष्ट स्थान रखता है । ऐतिहासिक महापुरुषों के विकास में उनके व्यक्तिगत चरित्र एवं गुण का विशेष योग रहता है । अवतारवाद के विकास क्रम में साधु एवं धर्म की रक्षा तथा दुष्टों का नाश करना आवश्यक माना गया है। ऋग्वेद में जामदग्नेय राम का उल्लेख मिलता है। पुनः इसमें जो इक्ष्वाकू
१. मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ४२७ २. तैत्तिरीय संहिता ६/२/४, १/८/१ ३. वही, ११/१/३/१; द्रष्टव्य-म० सा० अवतारवाद, पृ० ४२८ ४. शतपथ ब्राह्मण १/२/५/५; ५. भा० ११/४/२०; २/७/१७; १/३/१९ ६. विष्णुपुराण ३/१/४२-४३ ७. महाभारत शान्तिपर्व ३३९/८१-८३
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