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बुद्धत्व को अवधारणा : २०५
बुद्धत्व प्राप्त किया था । इसी साधना के बल पर बुद्ध सिद्ध हुए और उन्हीं शक्तियों के कारण लोगों ने बुद्ध को लोकोत्तर और सिद्ध माना एवं परिनिर्वाण के बाद अनेक लोकोत्तर एवं चमत्कारपूर्ण बातें उनके जीवन से जुड़ गईं । सम्भवतः आगे चलकर बोधिसत्व की अवधारणा के कारण बुद्ध बोधिसत्व माने जाने लगे, जब बुद्ध को विष्णु का अवतार स्वीकार कर लिया गया, तब विष्णु के अनेक गुणों का बुद्ध में समावेश कर दिया गया । विष्णु के निवास " नित्यलोक" के समान बुद्ध का निवास " तुषितलोक" माना गया जहाँ सहस्रों देव-दासियाँ इनकी सेवा करती हैं । बुद्धों के जन्मों के पूर्व उनकी मातायें प्रतीकात्मक स्वप्न देखती हैं, जिस प्रकार तीर्थंकरों के जन्म के पूर्व इनकी मातायें देखती हैं । जिस प्रकार विष्णु के अवतारों की संख्या में कमशः वृद्धि होती गई, उसी प्रकार बौद्धों में भी बुद्धों एवं बोधिसत्वों की संख्या में वृद्धि होती गई । एक बुद्ध से चौबीस बुद्ध और फिर विष्णु के अनन्त अवतारों के सदृश बुद्धों की संख्या भी अनन्त होती गई । *
बुद्धवंस में गौतम बुद्ध के पूर्व चौबीस बुद्धों का वर्णन है और गौतम बुद्ध को २५ वें स्थान पर रखा गया है तथा २६ वें बुद्ध के रूप में मैत्रेय माने गये हैं । " यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत" की भावना के सदृश ही बुद्ध पृथ्वी के क्षत्रियाक्रान्त होने पर क्षत्रिय कुल में एवं ब्राह्मणाक्रान्त होने पर ब्राह्मण कुल में जन्म लेते हैं ।
बुद्ध जो पहले अर्हत् मात्र कहलाते थे, वैष्णव अवतारवाद के प्रभाव से स्वयंभू, सर्वशक्तिमान एवं ब्रह्मा, विष्णु, ईश्वर और सूर्य-चन्द्र के रूप कहलाने लगे । कुछ लोग ऋषियों का अवतार, दशबल, राम, इन्द्र तथा वरुण कहते हैं और कुछ लोग बुद्ध को धर्मकाय, निर्माणकाय आदि शाश्वत रूपों में भी देखते हैं ।" बलदेव उपाध्याय बुद्ध के धर्मंकाय की
१. बौद्ध दर्शन, पृ० १२८
२. महायान, पृ० ६०
३. मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पु० ४३८
४. पालि साहित्य का इतिहास, पृ० ५८५
५. बुद्धिष्ट बाइबिल (गोडार्ड, पृ० १५८ ) : द्रष्टव्य-म०सा० अवतारवाद, पृ०
४३९
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