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१९६ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन हुई।' विकसित वराहावतार की कथा का बीज इसमें ढूंढा जा सकता हैं। वराह का अवतार लेने का मुख्य उद्देश्य ही पृथ्वी को मुक्त करना था।
तैत्तिरीय संहिता में वराह का सम्बन्ध प्रजापति से बताया गया है। उसमें कहा गया कि विश्व में सर्वत्र जल ही जल था, एक कमल पत्र को जल में देख प्रजापति ब्रह्मा ने विचार किया कि अवश्य ही इसका कोई आधार होगा, उसी समय ब्रह्मा की नासिका से वराहरूप जीव निकला और जल में प्रविष्ट हो गया और उस वराह ने जल के नीचे दबी हुई पृथ्वी को तोड़कर, एक खंड को ऊपर लाकर फैलाया इसी से इसका नाम पृथ्वी पड़ गया। एक कृष्णवराह ने अपनी शत-बाहुओं द्वारा पृथ्वी को ऊपर उठाया, ऐसा आख्यान तैत्तिरीय आरण्यक में मिलता है।" "शतपथ ब्राह्मण" में "एमुष" नामक वराह द्वारा प्रजापति की पृथ्वी को ऊपर उठाने का वर्णन किया गया है, इससे वराह का प्रजापति से सम्बन्ध द्योतित होता है।५ महाभारत के वनपर्व में विष्णु द्वारा वराह रूप धारण करने की कथा मिलती है। पृथ्वी जब प्राणियों के भार से दबने के कारण सैकड़ों योजन नीचे चली गई तो भगवान् नारायण से वह अपने उद्धार के लिए विनती करतो है तब भगवान् विष्णु ने एक दाँत वाले वराह का रूप धारण कर पृथ्वी को सौ योजन ऊपर उठा दिया। महाभारत में वराहावतार धारण करने का प्रयोजन पृथ्वी को जल से ऊपर लाने का है। परन्तु नारायणीयोपाख्यान में वराहावतार का उद्देश्य पृथ्वी को ऊपर उठाने तथा हिरण्याक्ष वध की भी चर्चा मिलती है।
१. मल्वं विभ्रती गुरुभूद भद्रपापस्य निधनं तितिक्षः । वराहेण पृथिवी संविदाना सूकराय विजिहीते मृगाय ॥
-अथर्ववेद १२.१.४८ २. तैत्तिरीय संहिता ७.१.५.१ ३. वही, १.१.३.५ ४. उद्धृताऽसि बराहेण कृष्णेन शत बाहुना ।
भूमिर्धेनुर्घरणी लोक धारिणी, इति ।-वही १०.१.८ ५. शतपथ ब्राह्मण १४.१.२.११ : द्रष्टव्य-मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद,
पु०४१३ ६. महाभारत, वनपर्व २३९.७६-७८
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