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तीर्थंकर की अवधारणा : ९१
सम्भवतः महावीर को निगंठ (निर्ग्रन्थ) ज्ञातृवंशीय क्षत्रीय होने के कारण नातपुत्त कहा गया हो ।
दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं ने महावीर को कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ का पुत्र माना है । दिगम्बर ग्रन्थों तिलोयपण्णत्ति, दशभक्ति और जयधवला में सिद्धार्थ को 'णाह वंश या नाथ वंश का क्षत्रिय कहा गया है' और श्वेताम्बर ग्रन्थ सूत्रकृतांग में 'णाय' कुल का उल्लेख है । इसी कारण से महावीर को नाय कुल चन्द और णाय पुत्त कहा गया है ।
णाह, णाय, णात शब्द एक ही अर्थ के वाचक प्रतीत होते हैं । इसीलिए 'बुद्धचर्या' में श्री राहुल जी ने नाटपुत्त का अर्थ - ज्ञातृपुत्र और नाथ पुत्र दोनों किया है ।
अस्तु यह निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि बौद्ध ग्रन्थों के निगंथ 'नाटपुत्त' कोई और न होकर महावीर ही थे । जिस प्रकार शाक्य वंश में जन्म होने के कारण बुद्ध के अनुयायी 'शाक्यपुत्रीय श्रमण' कहे जाते थे । इस तरह महावीर के अनुयायो 'ज्ञातृपुत्रीय निर्ग्रन्थ' कहे जाते थे ।
श्री बुहलर ने अपनी पुस्तक 'इण्डियन सेक्ट आफ दी जैनास्' में इस विषय पर प्रकाश डालते हुए लिखा है - "बौद्ध पिटकों का सिंहली संस्करण सबसे प्राचीन माना जाता है । ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में उसको अन्तिम रूप दिया गया ऐसा विद्वानों का मत है । उसमें बुद्ध के विरोधी रूप में निगंठों का उल्लेख है । संस्कृत में लिखे गए उत्तरकालीन बौद्ध साहित्य में भी निर्ग्रन्थों को बुद्ध का प्रतिद्वन्द्वी बतलाया गया है ।
(स) अंगुत्तर निकाय, पंचकनिपात ५|२८|८|१७ । (द) मज्झिमनिकाय, उपातिसुत्त २।१।६ ।
१. (अ) कुण्डपुरवरिस्सरसिद्धत्थक्खत्तियस्य णाह कुले ।
तिसिलाए देवीए देवीसदसेवमाणाए ॥२३॥ - जयधवला, भा० १, ५०७८ ।
( ब ) 'णाहोग्गवंसेसु वि वीर पासा' ॥५५०॥ तिलोयपण्णत्त, अ० ४ । (स) 'उग्रनाथौ पार्श्व वीरौ ' — दशभक्ति पृ० ४८ |
२. 'णातपुते महावीरे एवमाह जिणुत्तमे — सूत्रकृतांग १ श्रु०, अ०, १ उ० । ३. बुद्धचर्या पृ० ५५१ । ४. वही पृ० ४८१ ।
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