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९० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
आज्ञा लेकर संन्यास ग्रहण किया ।' परन्तु दिगम्बर परम्पर के अनुसार महावीर ने अपने माता-पिता की आज्ञा से संन्यास ग्रहण किया था। महावीर का साधना काल अत्यन्त दीर्घ रहा, उन्होंने बारह वर्ष छः माह तपस्या करके वैशाख शुक्ल दशमी को बयालिस वर्ष की अवस्था में कैवल्यज्ञान प्राप्त किया था। वे कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् लगभग ३० वर्ष तक अपना धर्मोपदेश देते रहे और अन्त में ७२ वर्ष की अवस्था में मध्यम-पावा में निर्वाण को प्राप्त हुए। उनके संघ में १४००० श्रमण ३६०० श्रमणियाँ थीं। ____ महावीर के जीवनवृत्त सम्बन्धो प्राचीनतम उल्लेख हमें आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के उपधान सूत्र नामक नवें अध्याय में तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के भावना नामक अध्ययन में मिलता है । पुनः महावीर के जीवनवृत्त का विस्तृत उल्लेख कल्पसूत्र में उपलब्ध होता है। इसके पश्चात् आवश्यकणि और परवर्ती महावीर चरित्रों में मिलता है। महावीर के जीवनवृत्तों को हम काल क्रम में देखें तो ऐसा लगता है कि प्राचीन ग्रंथों में उनके जीवन के साथ बहुत अधिक अलौकिकताएँ नहीं जुड़ी हुई हैं, किन्तु क्रमशः उनके जीवनवृत्त में अलौकिकताओं का प्रवेश होता गया । जिसको चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। महावीर की ऐतिहासिकता ____ महावीर की ऐतिहासिकता निर्विवाद है। महावीर के जन्मस्थल कुण्डग्राम को आजकल वसुकुण्ड कहते हैं जो कि आज भी गण्डक नदी के पूर्व में स्थित है। बसाढ़ की खुदाई से प्राप्त सिक्के और मिट्टी की सीलें ईसापूर्व लगभग तोसरी शताब्दी की कही जाती हैं। सिक्कों पर अंकित-वसुकुण्डे जन्मे वैशालिये महावीर' से महावीर की ऐतिहासिकता सिद्ध होती है । वर्धमान महावीर को बौद्ध पिटक ग्रन्थों में 'निगंठ-नातपुत्त' कहा गया है। निर्ग्रन्थ परम्परा का होने के कारण
१. कल्पसूत्र, ११०, ११२, आवश्यकचूणि प्रथम भाग, पृ० २४९, आ० नि०
गा० २९९ । २. कल्पसूत्र, १२० । ३. वही, १३४-१४७ ।। ४. (अ) संयुत्त निकाय, नानातिस्थिय सुत्त, २।३।१०,
(ब) संयुत्तनिकाय, संखसुत्त ४०1८,
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