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१६२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
तत्कालीन बोधिसत्व राजा सुदर्शन ने शास्ता एवं उनके संघ को चीवर एवं भोजन प्रदान किया था । शास्ता ने कहा कि आप इस कल्प से ३१ कल्प पूर्ण होने पर बुद्ध होंगे। __ भगवान् के दो प्रधान शिष्य सोण एवं उत्तर थे और इनके परिचारक उपशान्त थे। इनकी प्रधान शिष्याएँ दामा तथा समाला थीं। इनको शाल वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था। इनके शरीर की ऊँचाई ६० हाथ और आयु ६० हजार वर्ष थी। (२२) भगवान् ककुसन्ध
भगवान् विश्वभू के बाद पुरुषों में श्रेष्ठ एवं अप्रमेय ककुसन्ध नामक बुद्ध हुए।'
भगवान् ककुसन्ध का जन्म क्षेमनगर के अग्निदत्त नामक ब्राह्मण के यहाँ हआ था, इनकी माता का नाम विशाखा था।
भगवान् ककुसन्ध ने एक ही बार धर्मोपदेश दिया, उस धर्मसम्मेलन में एकत्र होने वाले भिक्षुओं की संख्या ४० हजार थी।
उस समय के बोधिसत्व राजा क्षेम ने शास्ता एवं उनके संघ को चीवर, पात्र और भोजन प्रदान किया। शास्ता ने कहा कि आप भविष्य में बुद्ध होंगे।
भगवान् के दो प्रधान शिष्य विधुर एवं संजीव थे और इनके परिचारक बुद्धिज थे। इनकी प्रधान शिष्याएँ श्यामा एवं चम्पका थीं। महाशिरीष वृक्ष इनका बोधि वृक्ष था। इनके शरीर की लम्बाई ४० हाथ एवं आयु ४० हजार वर्ष थी। (२३) भगवान् कोणागमन
भगवान् ककुसन्ध के बाद नरश्रेष्ठ कोणागमन नामक बुद्ध हुए। १. "वेस्सभुस्स अपरेन, सम्बुद्धो द्विपदुत्तमो । ककुसन्धो नाम नामेन, अप्पमेय्यो दुरासदो ॥"
-बुद्धवंस अट्ठकथा, पृ० ३७० २. "ककुसन्धस्स अपरेन, सम्बुद्धो द्विपदुत्तमो। कोणागमनो नाम जिनो, लोकजेट्ठो नरासभो ॥"
-वही, पृ० ३७६
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