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१७८ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन ३. विष्णु शब्द की व्याख्या
विष्णु शब्द की व्युत्पत्ति विश् प्रवेश करना अथवा अश्व्याप्त करना धातु से की गई है-"विष्णुर्विशतर्वा व्यश्नोतर्वा ।" विष्णुपुराण में भी 'विश्' धातु का अर्थ प्रवेश करना है, सम्पूर्ण विश्व उस परमात्मा में व्याप्त है।' ऋग्वेद में विष्णु को सौर देवता कहा है और वे सर्य के रूप हैं। आचार्य यास्क के अनुसार रश्मियों द्वारा समग्र संसार को व्याप्त करने के कारण सूर्य ही विष्णु नाम से अभिहित हुये हैं। ऋग्वेद में "स्यन्दन्तां कुल्याः विषिताः पुरस्तात्" कहकर विष्णु की इन्द्र से तुलना की गई है। ऋग्वेद में विष्णु इन्द्र के सहायक देवता हैं वहाँ उन्हें वृत्रवध में इन्द्र की सहायता करते हुए दिखाया गया है। साथ ही वे जल को पृथ्वी की ओर प्रवाहित करने तथा बलपूर्वक बन्दी बनाई गयी गायों को मुक्त करने में भी इन्द्र की सहायता करते हुए वर्णित हैं। कठोपनिषद् में विष्णु को व्यापक या व्यापनशील कहा गया है।
विष्णु शब्द की व्याख्या के सम्बन्ध में पाश्चात्य विद्वानों ने भी अपने मत व्यक्त किये हैं। ब्ल्मफील्ड का मत है कि विष्णु यौगिक शब्द "वि+ स्नु" से बना है। 'स्नु' शब्द का अर्थ है शिखर या ऊपरी धरातल 'वि' उपसर्ग “से होकर" (अंग्रेजी का शब्द Through) का भाव व्यक्त करता है, इस प्रकार इस शब्द का अर्थ हुआ कि वह देवता जो पृथ्वी के पृष्ठभाग या धरातल से होकर जाता है ।
ओल्डेनवर्ग ने भी इस व्युत्पत्ति के अनुसार विष्णु का अर्थ 'विस्तृत क्षेत्रों का अधिपति' ( Herr der weiten Flachen ) अथवा 'भूमि के विस्तीर्ण क्षेत्र को पार करने वाला' माना है।
इसी प्रकार एक अन्य जर्मन विद्वान् ग्युन्टर्ट ने विष्णु शब्द का भाव
१. यस्लाद्विष्टमिदं विश्वं तस्य शक्त्या महात्मनः ।
तस्मात्स प्रोत्यते विष्णुविशेर्षातोः प्रवेशनात् ॥
-विष्णुपुराण ३।११४५
२. ऋग्वेद ५।८३८ ३. "अव्यक्तातु परः पुरुषो व्यापको लिङ्ग एव च ।
-कठोपनिषद् २/३/८
४. ओल्डेनवर्ग, रिलीगियोन डेर वेद, पृ० २१०
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