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बुद्धत्व की अवधारणा : १६३
भगवान् कोणागमन का जन्म शोभावती नगर में ब्राह्मण यज्ञदत्त के यहाँ हुआ था, इनकी माता का नाम उत्तरा था ।
भगवान् कोणागमन ने भी एक ही बार धर्मोपदेश दिया और उसमें सम्मिलित होने वाले भिक्षुओं की संख्या ३० हजार थी ।
उस समय के बोधिसत्व पर्वत नामक राजा ने शास्ता से धर्मोपदेश श्रवण कर प्रव्रज्या ग्रहण की। उन्होंने शास्ता एवं उनके संघ को भोजन, वस्त्र, कम्बल तथा स्वर्ण आदि प्रदान किया । तत्पश्चात् शास्ता ने कहा कि आप भविष्य में बुद्ध होंगे ।
भगवान् के दो प्रधान शिष्य भोयस एवं उत्तर थे और पारिचारक स्वस्ति थे । इनकी दो प्रधान शिष्याएँ सुभद्रा तथा उत्तरा थीं। इनको उदुम्बर वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था । इनके शरीर की ऊँचाई ३० हाथ तथा आयु ३० हजार वर्ष थी ।
(२४) भगवान् काश्यप
भगवान् कोणागमन के बाद मनुष्यों में श्रेष्ठ, धर्मराज प्रभंकर 'काश्यप' नामक बुद्ध हुए । '
भगवान् काश्यप का जन्म वाराणसी नगरी में ब्राह्मण ब्रह्मदत्त के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम धनवती था ।
भगवान् काश्यप ने भी एक ही बार धर्मोपदेश दिया उसमें सम्मिलित होने वाले भिक्षुओं की संख्या २० हजार थी ।
उस समय वेदों के पारंगत ब्राह्मण ज्योतिपाल ने शास्ता से धर्मोपदेश श्रवण कर प्रव्रज्या ग्रहण की, त्रिपिटकों का अध्ययन किया तथा बुद्ध शासन में रहे । शास्ता ने कहा कि आप भविष्य में बुद्ध होंगे ।
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भगवान् काश्यप के दो प्रधान शिष्य तिष्य और भारद्वाज थे एवं परिचारक सर्व मित्र थे । उनकी दो प्रधान शिष्याएँ अनुला और उरुवेला थीं । इनको न्यग्रोध वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था । इनके शरीर की ऊँचाई २० हाथ तथा आयु २० हजार वर्ष थी ।
१. " कोणागमनस्स अपरेन, सम्बुद्धो द्विपदुत्तमो । कस्सपो नाम सो जिनो धम्मराजा पभङ्करो | "
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- बुद्धवंस अट्ठकथा, पू० ३८६
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