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१०८ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
४. हीनयान और महायान में बुद्ध की अवधारणा " (अ) हीनयान में बुद्ध
हीनयान में बुद्ध को लोक ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ तथा परम बोधि को प्राप्त कहा गया है। वे सामान्य मनुष्य की तरह माता के गर्भ से जन्म लेते हैं। उनका विकास भी अन्य जरायुज प्राणियों के समान ही होता है। जन्म सम्बन्धी कुछ विशेषताओं को छोड़कर वे भी सामान्य व्यक्तियों की तरह बाल एवं कौमार्य अवस्थाओं को प्राप्त करते हैं तथा उनका भौतिक शरीर भी जरामरण की व्याधि से युक्त होता है। हीनयान के अनुसार बुद्ध भी अपने रागादि मलों का उच्छेद कर, क्लेश बन्धन से विमुक्त हो अर्हत्-पद को प्राप्त करते हैं, उनका चित्त संसार से विमुक्त होता है और मन विषयों से छुटकारा प्राप्त कर लेता है किन्तु इसके लिए अनेकानेक पूर्व जन्मों में शील एवं ब्रह्मचर्य की साधना करनो होती है, पूर्व जन्मों के साधना के द्वारा अजित पुण्य के फलस्वरूप वे अपने अन्तिम जन्म में एक विशिष्ट व्यक्तित्व को प्राप्त करते हैं इस जन्म में भी वे साधना करते हैं तथा अन्त में अर्हत् पद को प्राप्त कर लेते हैं। अहंत् पद को प्राप्त करने की उनकी यह यात्रा अहंत पद प्राप्त करने वाले दूसरे साधकों से बहुत भिन्न नहीं होती। केवल अन्तर यह होता है, जहाँ अर्हत् पद को प्राप्त सामान्य साधक उसे प्राप्त कर लोक-पीड़ा के निवारण के लिए प्रयत्नशील नहीं होता, वहाँ बद्ध अपने पूर्व जन्मों की साधना के वैशिष्ट्य के कारण जिस सत्य को उद्घाटित करता है उसे अपने तक सीमित न रखकर जन-जन को उसका उपदेश देता है । जिससे संसार के लोग अपनी दुःख-विमुक्ति के लिए प्रयत्नशील हो सकते हैं। जन्म सम्बन्धी कुछ विशेषताओं को छोड़कर धर्म चक्र का प्रवर्तन ही एक ऐसी विशेषता है जो बुद्ध को एक सामान्य अर्हत् से भिन्न करतो है । पालि त्रिपिटक के अनुसार सामान्य अहंत की अपेक्षा बुद्ध में निम्न विलक्षणताएँ पाई जातो हैं(आ) बुद्ध के जन्म सम्बन्धी विलक्षणताएँ
दीघनिकाय के महापदान सुत्त में बद्ध के जन्म के सम्बन्ध में निम्न अलौकिकताओं का वर्णन हमें मिलता है।'
१. दीघनिकाय भाग २, महापदानसुत्त (१.३.१७), पृ० १६-१४
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