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१२४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
हीनयान में ध्यान साधना की प्रधानता होती है जबकि महायान में महाकरुणा को साधना का प्राधान्य होता है। बोधिसत्व का लक्ष्य केवल अपना बुद्धत्व प्राप्त न कर सहस्त्रों प्राणियों को बुद्धत्व प्राप्त कराना होता है इसीलिए महायान में असंख्य बद्धों और बोधिसत्वों को कल्पना की गई है। बोधिचित्त उत्पाद के लिए महायान में दस भूमियों-मुदिता, विमला, प्रभाकरी, अचिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुक्ति, दूरङ्गमा, अचला, साधुमती और धर्ममेघ को पार करना होता है जबकि हीनयान में चार भूमियों-स्रोतापन्न, सकृदागामी, अनागामी और अर्हत् का ही उल्लेख है।
हीनयान और महायान के बुद्धत्व की अवधारणा में पारस्परिक भेद का मुख्य कारण त्रिकायवाद का सिद्धान्त है। हीनयान सम्प्रदाय में स्थविरवादियों ने त्रिकाय के विषय में कुछ स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है। महायानियों ने त्रिकायवाद के अन्तर्गत बुद्ध के तीनों कायों-निर्माणकाय, सम्भोगकाय और धर्मकाय को आध्यात्मिक रीति से विवेचना की है। इसकी चर्चा हम आगे करेंगे । बुद्धों की निम्न विशेषताएँ हैं । यथादसबल'
१. तथागत स्थान को स्थान के रूप में, अस्थान को अस्थान के रूप में जानते हैं अर्थात् उन्हें प्रत्येक परिस्थिति में क्या उचित है और क्या अनुचित है, इसका विवेक होता है।
२. तथागत अतीत, अनागत और वर्तमान में किए गये सत्त्वों के कर्मों के विपाक-स्थान और विपाक-हेतु को जानते हैं।
३. तथागत सर्वत्रगामिनी प्रतिपदा को जानते हैं अर्थात् उन्हें निर्माणमार्ग का यथार्थ ज्ञान होता है।
४. तथागत समस्त लोक या ब्रह्माण्ड को यथार्थ रूप से जानते हैं।
५. तथागत विविध स्वभाव वाले सत्वों अर्थात् प्राणियों को यथार्थ रूप से जानते हैं।
६. तथागत सभी प्राणियों की इन्द्रियों की सामर्थ्य और असामर्थ्य को जानते हैं।
७. तथागत ध्यान, विमोक्ष, समाधि और समापत्ति के बाधक (मलों) और सहयोगी कारकों को यथार्थ रूप से जानते हैं।
१. मज्झिमनिकाय भाग १, महासीहनादसुत्त (१२।२), पृ० ९८-१०१
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