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बुद्धत्व को अवधारणा : १५७
उस समय तीनों वेदों के पारंगत बोधिसत्व काश्यप ने शास्ता का धर्मोपदेश सुना, जिससे प्रभावित होकर काश्यप ने एक संघाराम (विहार) बनवाया और स्वयं त्रिरत्नों की शरण में आश्रय ग्रहण किया । तत्पश्चात् शास्ता ने कहा कि १८ सौ कल्पों के व्यतीत होने के बाद आप 'बुद्ध' होंगे |
भगवान् के दो प्रधान शिष्य पालित और सर्वदर्शी थे और परिचारक शोभित थे। इनकी प्रधान शिष्याएँ सुजाता एवं धर्मदिन्ना थीं। इनको प्रियंगु वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था । इनके शरीर की ऊँचाई ८० हाथ तथा इनकी आयु ९० हजार वर्ष थी ।
(१४) भगवान् अर्थदर्शी
भगवान् प्रियदर्शी के बाद मनुष्यों में श्रेष्ठ अर्थदर्शी हुए, जिन्होंने उस मण्डकल्प में घोर अन्धकार को विनष्ट कर सम्बोधि ( बुद्धत्व ) पद को प्राप्त किया ।"
भगवान् अर्थदर्शी का जन्म शोभित नगर के राजा सागर के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम सुदर्शना था ।
भगवान् ने तीन धर्म सम्मेलनों में धर्मोपदेश दिया, जिनमें एकत्रित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः ९८ लाख, ८८ लाख एवं ८८. लाख थी ।
'उस समय बोधिसत्व सुसीम नाम के ऋद्धिसम्पन्न तपस्वी ने देवलोक से मंदार पुष्प लाकर शास्ता अर्थदर्शी की पूजा-अर्चना को । तदुपरान्त शास्ता ने कहा कि आप भविष्य में 'बुद्ध' होंगे ।
भगवान् के दो प्रधान शिष्य शान्त एवं उपशान्त थे तथा परिचारक अभय थे । इनकी प्रधान शिष्याएँ धर्मा एवं सुधर्मा थीं। इनको चम्पक 1 वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था । इनके शरीर की ऊँचाई ८० हाथ और आयु एक लाख वर्ष थी ।
(१५) भगवान् धर्मदर्शी
भगवान् अर्थदर्शी के पश्चात् उसी कल्प में धर्मदर्शी नामक शास्ता
१. " तत्येव मण्डकप्प म्हि, अत्यदस्सी महायसो | महातमं निहन्त्वान, पत्तो सम्बोधिमुत्तमं ॥”
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- बुद्धसअट्ठकथा, पृ० ३१६
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